चोटी की पकड़–42

"मेरी बात मानो, रानीजी का काम करो। कौनसी तरक्की चाहते हो?"


"जमादारी।"

"बाद को मालूम होगा। यह बात किसी से कहना मत। कहो, नहीं कहूँगा।"

"नहीं कहूँगा।"

"यह जमादार कैसा आदमी हैं?"

"अच्छा।"

"अच्छा आदमी है, तो क्या जमादारी करोगे। कहो, बुरा है।"

"हमारा अफ़सर।"

"तुमको जगह अफ़सर की कहाँ से मिलेगी? इसी आदमी की जगह तुमको दी जाएगी। समझकर कहो, चाहिए या नहीं?"

"चाहिए।" आवाज गिर गई।

मुन्ना एक कदम बढ़ी। कहा।"कहो, रानीजी से कुल बातें कही जायँ।"

खुश होकर रुस्तम ने कहा, "रानीजी से कुल बातें कही जायँ।"

"अच्छा, तलवार निकालकर कसम खाओ, कहो, हम रानीजी का साथ देंगे।"

रुस्तम तन गया। तलवार निकालकर क़सम खायी।

मुन्ना ने कहा, "तलवार हमें दे दो।"

इधर-उधर देखकर रुस्तम ने तलवार दे दी।

मुन्ना ने तलवार लेकर सलामी दी। कहा, "यह जमादार के साथ रानी और राजा की सलामी है। अब तुम जमादार से छूट गए। कहो, हाँ।"

"हाँ।"

"यह लो अपनी तलवार।" रुस्तम को तलवार दे दी। कहा, "जैसी जमादार को सलामी मैंने दी वैसी मुझे रानी कहकर तुम दो।"

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